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...आपको मेरा नमस्कार...!! मुझे कौन जानता है.......? यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि मैं किसे जानता हूँ ? मै..सकलानी....!!!..आनंद सकलानी....!!!! पहाड़ो की पैदाइश, हिंदुस्तान के चार मशहूर शहरों शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद अब कुछ वर्षों से अच्छी कंपनी का लापरवाह कर्मचारी ..! राजनीति करना चाहता था, पर मेरे आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं, और मैं इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता हूँ, गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने...!!!..खैर दोस्तों....!! जिंदगी का क्या है.....?सपने तो दिखाती है मगर ...बहुत गरीब होती है....!!

Sunday, January 5, 2014

कसकता जख्म। …!!!


मित्रो पिछले १२ -१४ साल से मै पहाड़ से भयंकर पलायन देख रहा हूँ
...हालाँकि यह मेरे अनुमान से लगभग ४० सालों से निरन्तर शुरू है ...लेकिन इस अवधि में इसने विकराल रूप धारण किया है ..अपनी शान पर अडिग रहने वाले और प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब पहाड़ की इस दुर्गति पर मै इतना व्यथित हूँ कि कभी कभी खुद को महामूर्ख समझने लगता हूँ .. हम फेसबुक शहरी ऐशो-आराम और पहाड़ की सुंदरता/सबलता पर व्यथाएँ -कथाएं तो बहुत सुनाते रहेंगे ... मगर .. अब पहाड़ को जगाने का वक्त आ गया है… अभी नहीं तो कभी नहीं ....!!!
क्यूंकि जिस पायदान पर मुझ जैसे या मेरे हमउम्र "भैजी /भुला " हैं उनकी पीठ पर पहाड़ की संस्कृति /तकनीक एवं तजुर्बा है तो गोद में शहरीकरण के विलेय में विलीन होती थर्ड जनरेसन ...!!! हमने अगर संवाहक की भूमिका निभाने में कसर छोड़ दी तो हम अपनी मा की संस्कृति और पिता की परिवरिश गवाने के अपराधी तो होंगे ही ....

साथ में कसूरवार होंगे अपनी उस मौत के ..जो हमें अपने "भै-बंधु "के बीच शरीर त्यागने के बजाय आलिशान हॉस्पिटल के कमरे या .... अपनी ही जोड़ी दौलत से बने घर के बच्चो के "दादाजी वाले कमरे " में आएगी ...!!!

..इसी क्रम में बहुत सवाल लिखूंगा ..कुछ समाधान भी हैं ..!!!आप भी जरुर सोचियेगा ....!!!

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