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...आपको मेरा नमस्कार...!! मुझे कौन जानता है.......? यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि मैं किसे जानता हूँ ? मै..सकलानी....!!!..आनंद सकलानी....!!!! पहाड़ो की पैदाइश, हिंदुस्तान के चार मशहूर शहरों शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद अब कुछ वर्षों से अच्छी कंपनी का लापरवाह कर्मचारी ..! राजनीति करना चाहता था, पर मेरे आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं, और मैं इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता हूँ, गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने...!!!..खैर दोस्तों....!! जिंदगी का क्या है.....?सपने तो दिखाती है मगर ...बहुत गरीब होती है....!!

Tuesday, October 11, 2011

खुद का तिरस्कार...!!!

आज ३ दिन हो गए...!!!
माँ ने शायद ३ मिनट  में भुला दिया होगा ..मगर ये वाकया मुझे अब  तक वैसे ही सालता आ रहा है...जैसा  कि तीन दिन पहले...!!!..
......मुझे मेरे बदतमीज और जाने क्या क्या होने का अहसास अक्सर होता है...मगर इस बार पापी और झूठा अहंकारी भी समझ आया ..!!!
          हुआ यूँ कि मेरा स्वास्थय   कुछ ख़राब चल रहा था...काम  आपाधापी को छोड़ कर मै कुछ जरुरी काम लेके जल्दी घर आया .तस्सली से करने के लिए...करीब पौने घंटे का काम निपटा लिया ..तो अँधेरा सा हो गया. माँ जो की करीब ७२ साल की हैं उठी ,शायद ...माँ  को बाथरूम जाना था ..स्विच बोर्ड एक ही है ..उन्होंने कापते हाथो से  बटन दबाया...वो बटन मेरे पी०सी के कनेक्शन का था..बस कंप्यूटर बंद हो गया...!!
   एक दो बार पहले ऐसा हुआ है...पर इस बार मैं झल्ला सा गया ..शायद दौरा पड़ा पागल पन का ..मैंने माँ को कुछ नहीं कहा .बस .टेबल से सेल फोन उठाया और बहुत ताकत से जमीन पे पटक दिया...जैसे माँ को दिखाया क़ि... हे माँ देख तेरा बेटा इतना ताकतवर हो गया  अब और तुम कुछ नि कर पाओगी "..कितना घटियापन था...!!! घृणा सी आ जाती है वो सोच के....खुद  पे....
..खैर दोस्तों..
....मैंने माँ को अवाक् देखा...उनकी  डब डबाई आँखों में डर सा देखा ..शायद पहली बार..!!!.अगले ही पल माँ संभल गई...बैठ कर फ़ोन  के बिखरे टुकड़े समेटते हुए  बदबुदाई " म्यरा... इन्नी गुस्सा रालू  त जिंदगी कनकै काटल्य़ा" (मेरे बेटे ऐसे ही गुस्सा करते रहे  तो जीवन कैसे काटोगे..?..)

..मुझे ममता का वास्ता  दोस्तों...
उस  वक्त मन  हुआ क़ि माँ क़ि बाँहों में छुप जाऊं ..रो रो के लिपट जाऊं..और कहूं क़ि माँ आप  कहीं से  भी कमजोर नहीं  हैं.. समझाऊँ कि आपने कुछ भी तो  गलत नहीं किया ..गलती तो मेरी  है मैंने बिजली रोकने वाली मशीन (यु० पी० एस०) नहीं लगाया ...फाईल सेव नहीं की...
  खैर दोस्तों ...पर्स चेक किया बहार निकला...नया फोन जो लेना था..सारा डिस्प्ले और कैबिनेट टूट चुकी थी .कि खास दोस्त का फोन आया ...मैंने उसकी बात सुने  बगैर अपनी बात एक  सांस में कह दी...
.....मगर दोस्तों उसका जो जबाब था वो शायद मुझे आपेक्षित  ही  नहीं था...उसका जबाब सुन के मै सन्न  रह गया ..कहा..कि ."एक बार के लिए हम सोचें कि हमसे  ऐसी भूल हो गयी ..मगर हम आप  से इस तरह की हरकत की कल्पना भी नहीं कर सकते..."
पता है इस का मतलब क्या था...फेसबुक पर या ब्लॉग पर ..मनमोहक पोस्ट लिखने वाला या अच्छी बाते करने वाला आनंद ऐसा नहीं कर सकता...!!
..............पर पीड़ा देता है ये सब...!!!.अगर मैं घर में अच्छा नहीं तो बहार अच्छा कैसे हो सकता हूँ...??? इतना दिखावा क्यूँ है मुझे में...?
सवाल जहा का तहां है...
...मै खुद   का तिरस्कार झेल रहा हूँ...माँ कब की चैन से  सो चुकी हैं...पास में... मै ..सर पे ग्लानि का बोझ लिए जाग  रहा हूँ... माँ मुझे माफ़ कर देना ...क्योंकि दर्द में और  भूखा प्यासा नादान बालक भूख  लगने पे ही तुम्हे याद करता है