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...आपको मेरा नमस्कार...!! मुझे कौन जानता है.......? यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि मैं किसे जानता हूँ ? मै..सकलानी....!!!..आनंद सकलानी....!!!! पहाड़ो की पैदाइश, हिंदुस्तान के चार मशहूर शहरों शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद अब कुछ वर्षों से अच्छी कंपनी का लापरवाह कर्मचारी ..! राजनीति करना चाहता था, पर मेरे आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं, और मैं इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता हूँ, गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने...!!!..खैर दोस्तों....!! जिंदगी का क्या है.....?सपने तो दिखाती है मगर ...बहुत गरीब होती है....!!

Sunday, June 12, 2011

दहेज़ ...दोष किसका... ?


 साथियों को मेरा नमस्कार....!!! 
स्पेशल मुस्कान  खासकर मेरी हमउमर महिला दोस्तों को...जो उन राहों से गुजर  रहीं है..जिनमे मेरे भी कदम ...संभाले नि संभल रहे....कुछ सवाल बचपन से दिमाग में अटकते है...अब दायरा  बढ़ गया  तो दिल ने कहा  आपसे बाँट लू....!!!
कुछ शिकायते है....बुरी लगेंगी तो अपनी राय दे....पर मुझे आप  से शिकायत है..उदाहरण भी दूंगा ..वरना आप में कई लोग ...इस उम्र में लडको से चिढ  जाते है.....(मुझे पता  है.......हम्म्म्ममम्म...) 
...तो अथ...श्री.. कथा शुरू होती है मेरे गाँव से......मै ५ भाई बहिनों के परिवार में सबसे छोटा....कुछ जिद्दी, मुहफट.....हां माँ को बड़ी दिक्कत कर देता था...बाकी सब से तो पिट जाता था...
.......अब दहेज़ का मुद्दा चलता है तो बहुत छोटा था...जब बड़ी दी को..इस बात पे रोते देखा कि... बाकी सामान तो आया ...कलर टी ० वी ० कहाँ है....?
....मंझली  दीदी इस बात पे रोई थी कि लड़का दुकानदार है...पता नहीं बिजनेस चलेगा कि नहीं....???..इसलिए माल (कैश ) में डील होगी...!!
......और छोटी तो दीदी सबसे स्मार्ट निकली..उसने   इतिहास से सबक लेकर ....बाकायदा एक खूबसूरत लिस्ट तैयार क़ी...बाकायदा ब्रांड नाम के साथ....!!
..खैर जो भी हो ...वो लोग भरे पूरे  सयुंक्त परिवारों में है....उनके ससुराल में जाता हूँ..तो गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है..अच्छी खासी आवभगत होती है..मन में माँ के संस्कारों को सलाम करता हुआ .शान से लौट जाता हूँ..!!
..मेरे युवा मित्रो....दहेज़ है क्या....? 
...प्राचीन भारत में माँ बाप ने आपसी समझोतों से नवदम्पति के नव जीवन निर्माण के लिए कुछ आवश्यक सामान का प्रबंध किया होगा...जो वर्तमान में दहेज़ का भयंकर रूप ले चुका है....हत्याए ,तलाक...विवाद ...और जाने कितने दुश्परिमाण को जन्म देता रहा है ये दहेज़....
..पर मेरे लिए अब  हैरान कर देने वाली बात ये है...अभी इस पर चर्चा करने को तो हजारो मिल जायेंगे...थू- थू करेंगे... लेकिन हिंदुस्तान के करीब २१-२२ प्रदेश घुमने के बाद भी मुझे ..खासकर लड़कियों का कोई इतना बड़ा या मजबूत संगठन नजर क्यूँ नहीं आया....जो इस रिवाज कई पुरजोर खिलाफत करे....???
..क्या इस बात को लेकर कोई असुरखा क़ी भावना  है...?? ..सरकार ने इस पर बहुत कानून और एक्ट तो बना दिए...लेकिन उनको अमल में कौन लायेगा...? 
..नफरतों से भरी ये रस्म शायद कब क़ी ख़तम हो जाती जो हमारी कुछ युवा मित्र..इसको सोचती....उनकी बात इसलिए कर रहा हूँ..क्यूंकि सबसे जादा वो ही इस इस विषग्नि  की शिकार होती है ..
..कई लोग कहते है...हिंदुस्तान  की महिलाये अपनी परेशानियों की जिम्मेदार खुद है... अबला सुनना उन्हें अच्छा लगता है..
.....और एक सच  तो मुझे भी पता है... कि चाहे लड़का हो या लड़की ..सास ससुर हो या माँ बाप....
कि यहाँ पे ताली दोनों हाथ से बज रही है.... जब तक  लड़की सपनो के राजकुमार को पैदल या साईकिल के बजाय  कार पर आने के ख्वाब देखेगी ..और लड़की के माँ बाप ..लड़के के बंगले और कार पे नजर रखेंगे.....तब तक ...तब तक लड़के के घर वाले..लड़की के घर कि दौलत पे नजर गडाते रहेंगे.....यही सच है...और बरक़रार रहेगा....
......ऊपर अपने घर का उदहारण  दिया है.... लडकियाँ दहेज़ से लड़ना ही नहीं चाह रही हैं ....सुविधा कि चाहत और सपनो ने ...उनको  संघर्ष के रास्तों से दूर कर दिया है....आँखे खुली है..पर चुन्नी   लगा रखी है....सपनो ने उन्हें...कमजोर ही किया है...

....याद रखना....!!!