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...आपको मेरा नमस्कार...!! मुझे कौन जानता है.......? यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि मैं किसे जानता हूँ ? मै..सकलानी....!!!..आनंद सकलानी....!!!! पहाड़ो की पैदाइश, हिंदुस्तान के चार मशहूर शहरों शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद अब कुछ वर्षों से अच्छी कंपनी का लापरवाह कर्मचारी ..! राजनीति करना चाहता था, पर मेरे आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं, और मैं इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता हूँ, गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने...!!!..खैर दोस्तों....!! जिंदगी का क्या है.....?सपने तो दिखाती है मगर ...बहुत गरीब होती है....!!

Monday, April 4, 2011

रहम की पहली किस्त

..मुझे मैसूर ..बंगलोर (कर्नाटक)आये हुए सिर्फ  एक हफ्ता गुजरा था...सी० एफ़० टी ० आर० आइ० के हास्टल में मेरे कई उधोगपति मित्र बन गए थे..उनमे सी रंगराजन जो "सलेम "तमिलनाडु के थे  और लायन नामक संस्था के  जिला अध्यक्ष भी थे .रविवार की सुबह सुबह बोले चलो आपको तमिल फिल्म दिखाते हैं...हम दोनों के बीच में भाषा को लेकर बड़ा  असमंजस था...उन्हें इंग्लिश बिलकुल भी नहीं आती थी..मेरी भी फ्लूएंसी नहीं थी ..बस हम इशारो में बाते करते ..और एक दुसरे  की बात समझ के  बहुत खुस होते...!!!
...बहरहाल हम  फिल्म गए ..मुझे देख देख के कहानी समझ आ गयी....मगर ये क्या ..हुआ ? रंगराजन ने फिल्म के दौरान बहुत शराब पी ली थी...वो लगभग कुर्सियों पे लुढ़क गए...मैं फिल्म के बाद उन्हें जैसे तैसे सम्भाल के बाहर ले आया...मगर उनका शरीर भारी था मुझसे बिलकुल संभल  नहीं पाया...बडबडाते हुए वो मुझे अकेले हॉस्टल जाने को कह रहे थे..मुझे कुछ भी मालूम नहीं था...रात के बारह से जादा बज गए होंगे..सुनसान सड़क पे हम पैदल चले जा रहे थे...अचानक एक लाज  देख के वो रुक गए और गिरते पड़ते वह चले गए...उन्हें वहा की भाषा का पूरा ज्ञान था  उन्होंने रूम लिया और  मुझे भी सोने को कह के खराटे लेने लगे...!! 
मुझे यहाँ नहीं रुकना था.. और मैं पछता रहा था क़ि मैं उनके साथ आया क्यूँ ..? और भी बड़ी बात ये थी .क़ि उनको सँभालते हुए मेरा पर्स  कही गिर गया था... उसमे करीब ३-४ हजार रहे होंगे... फिर भी  मेरा मन कॉलेज जाने को हुआ...मैं बिना कुछ सोचे ..बाहर आ गया..मुझे पहाड़ो पे बीसों किलोमीटर पैदल चलने क़ि आदत थी...!!
...विधि क़ी विडीम्ब्ना थी मित्रो...!! मै इस शहर से अनजान उल्टी दिशा में चला जा रहा था...बारिश शुरू हो चुकी  थी और .चन्दन के पेड़ों क़ी खूसबू मेरे नथुनों में महक रही थी..इसी तरह १०-१२ किलोमीटर चलने के बाद 
मुझे लगा क़ी मै गलत दिशा में आ गया हूँ... शहर क़ी सीमा पर आ चुका था मैं. ...
अब क्या हो सकता है...?मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था...भूख भी लग रही थी...प्यास भी और थकन भी...!!..मैंने पास में .एक दुकान क़ी शेड देखी...और वहा जाके उसके नीचे  दीवार के सहारे बैठ गया...जुलाई क़ी उमस में मुझे ठंडी ठंडी हवा ने नींद के आगोश में भेज दिया...!!.सुबह करीब ५ बजे मेरी आँख खुली ..एक दम से ख्याल आया मेरे पास तो हॉस्टल में भी पैसा नहीं है...? ए० टी ०एम ० भी गया ..खाना कपडा तो हॉस्टल से मिल ही जायेगा लेकिन घर कैसे फोन करूँ...?मैंने तो घर भी  मना कर रखा था क़ी मैं फोन कर दूंगा आप मत करना...!!
..खैर  भूख से बेहाल होता हुआ मै उठा....!!बारिश और तेज हो गई थी ..सुबह की बात थी स्कूल की गाड़ियों के अलावा इक्का दुक्का ट्रेफिक था बहुत धीरे धीरे मैं  वापस बढ़ रहा था..फिर जाने क्यूँ एक शेड के पास ऐसे ही खड़ा हो गया...!! प्रकृति के खेल निराले हैं मैंने पहाड़ों पे हमेशा रिमझिम वाली बारिश देखी .है .यदा कदा तेज...जब बेमौसम बरसे तो....!!
मगर यहाँ तो बाढ़ सी आ गयी थी सड़क में...!! 
..और दोस्तों...ये बाढ़ कही कहर ढाती है कही बेघर करती है ...कही सुनामी है ..कही राजस्थान..तो कही उडीसा....!!! 

मुझे तो ये छोटी बाढ़ वरदान बन के आयी.....तेज बहते पानी में ..रबर बैंड  में गुंथे ..कुछ रुपये बहते हुए नजर आये...एक पल के लिए यकीं नि हुआ ..लेकिन भूखे शेर की तरह झपट गया मैं...!! 
बड़ी रकम थी ..सात हजार दो सौ..!! अनजान शहर था ..पोलिश -थाने की कहानिया एक जैसी हैं...ये मैं समझता था... चुपचाप भीगी हुयी पैंट  की जेब में वैसे ही सरका दिए....!रफ़्तार दुगुनी हो गयी थी.........
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...क्यूँ की वैसे भी ..मालिक के रहम की ये पहली किस्त थी...!!