...यूँ तो देवभूमि उत्तराखंड देवताओं से और तीर्थो से सजी हुई है..और हर पर्वत पे कही न कही किसी देवता का वास है . मेरा गाँव "हवेली" भी माता सुरकंडा के पावन चरणों में निवास करता है...!!.ठीक ५०० मीटर नीचे ...!!.संक्षेप में एक परिचय ...

..."बात तब की है जब राजा दक्ष हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में यज्ञ कर रहे थे...और अपने दामाद भगवान शंकर को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया ..तो सती माता ने क्रोध में आकर यज्ञ कुंड में आत्म दाह कर लिया...भगवान शिव तांडव करते हुए उनके मृत शरीर को उठाया तीनो लोक में घुमाया.....उनके शारीर के अंग जिस जगह भी गिरे वो जगहे सिध्ह्पीठ कहलाई...!! चूँकि इस पर्वत पर (समुद्र तल से २७५७ मीटर ऊंचाई )..माता का सिर गिरा था तो यह जगह सुरकंडा के नाम से प्रसिद्द हुई...!
..... इस सम्बन्ध में आपको कई लोक कथाएं अन्य श्रोतों से भी मिल जाएँगी ..जिस सत्य घटना का जिक्र यहाँ पे मैं कर रहा हूँ वह शायद अन्यत्र न हो....!!
.... गाँव में एक अनपढ़ लोहार था गरीब दुर्बल निष्कपट ..गाँव के खेती के औजार ठीक कर के और थोड़ी बहुत मजदूरी करके अपनी जीविका चलाता था ...मैंने भी अपनी आँखों से देखा उसे...कहते हैं एक बार माँ उसके सपने में आके बोली..."सौण्या... मेरे शेर के पैर में बहुत बड़ा कांटा घुस गया है...तू अपनी भट्टी में बड़ा सुआ तैयार कर ..... कल रात मंदिर के पीछे जंगल में आके उसके पंजे से वो कांटा निकाल दे...!!"
...सौण्या ने किसी को कुछ नी बताया लेकिन डरते पड़ते अपना लोहे का सुआ लेकर .माँ की बताई हुई जगह पहुँच गया ..कांटा निकला और डर के हांफता हुआ घर आ गया ..पत्नी जाग गई ..बोली ...इतनी रात को कहा गए थे...???.
......डरते सहमते सौण्या ने सारी बात बताई तो ..पत्नी बोली ..घर में कुछ भी नहीं है...माँ से कुछ माँगा भी....????...हक्का बक्का सौण्या इतना ही कह सका मुझे पंजे के सिवा कुछ भी नहीं दिखा ...क्या मांगता ...???
..सौण्या "दिदा" (पहाड़ों में अधिकतर लोहार के लिए बड़े भाई का संबोधन )अब इस दुनिया में नहीं है दोस्तों ....!! १२० साल तक जिया वो...!!! स्कूल के दिनों मेंआते जाते उनको हुक्का गुड गुड़ाते हुए मैंने उनके घर के बहार सैकड़ों बार देखा उन्हें...
...बहरहाल उनके तीन बेटे है.....एक बेसिक शिक्षा अधिकारी.....,,,,एक बैंक में जोनल मैनेजर ...,,,, एक ओ० एन० जी० सी० में डिप्टी डारेक्टर......!! !!
........बिन मागे माँ ने बहुत कुछ दे दिया था उन्हें........!!!
great feeling aati h..apne pahadon ki kahaniyan sunkar..wah bhai..
ReplyDeleteजाट देवता का माँ सुरकंडा को प्रणाम,
ReplyDeleteमैं व मेरा परिवार भी यहाँ दो बार जा चुके है।
एक बार फ़रवरी, दूसरी बार अक्टूबर में।
आपका गाँव "हवेली" भी माता सुरकंडा के पावन चरणों में
अबकी बार आपसे भी मिलूँगा। आओ दोस्ती करो।
लौहार के भी जय