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...आपको मेरा नमस्कार...!! मुझे कौन जानता है.......? यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि मैं किसे जानता हूँ ? मै..सकलानी....!!!..आनंद सकलानी....!!!! पहाड़ो की पैदाइश, हिंदुस्तान के चार मशहूर शहरों शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद अब कुछ वर्षों से अच्छी कंपनी का लापरवाह कर्मचारी ..! राजनीति करना चाहता था, पर मेरे आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं, और मैं इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता हूँ, गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने...!!!..खैर दोस्तों....!! जिंदगी का क्या है.....?सपने तो दिखाती है मगर ...बहुत गरीब होती है....!!

Monday, February 28, 2011

महिमा सुरकंडा की

....मित्रो ..यह ब्लाग "सुरकंडा के आँचल से " ही क्यों....आइये कुछ छोटी सी पहचान दिए देता हूँ....!!
           ...यूँ तो देवभूमि उत्तराखंड देवताओं  से और तीर्थो से सजी हुई है..और हर पर्वत पे कही न कही किसी देवता का वास है .  मेरा गाँव "हवेली" भी माता सुरकंडा के पावन चरणों में निवास करता है...!!.ठीक ५०० मीटर नीचे ...!!.संक्षेप में एक परिचय ...











..."बात तब की है जब राजा दक्ष हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में यज्ञ कर रहे थे...और अपने दामाद भगवान शंकर को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया ..तो सती माता ने क्रोध में आकर यज्ञ कुंड में आत्म दाह कर लिया...भगवान शिव तांडव करते हुए उनके मृत शरीर को उठाया तीनो लोक में घुमाया.....उनके शारीर के अंग जिस जगह भी गिरे वो जगहे सिध्ह्पीठ कहलाई...!! चूँकि इस पर्वत पर (समुद्र तल से २७५७ मीटर ऊंचाई )..माता  का सिर गिरा था तो यह जगह सुरकंडा के नाम से प्रसिद्द  हुई...!
..... इस     सम्बन्ध में आपको कई लोक कथाएं अन्य श्रोतों से भी मिल जाएँगी ..जिस  सत्य घटना का जिक्र यहाँ पे मैं कर रहा हूँ वह शायद अन्यत्र न हो....!!








....  गाँव में एक अनपढ़ लोहार था गरीब दुर्बल निष्कपट ..गाँव के खेती के औजार ठीक कर के और  थोड़ी  बहुत मजदूरी करके अपनी जीविका चलाता था   ...मैंने  भी अपनी आँखों से देखा उसे...कहते हैं एक बार माँ उसके सपने में आके बोली..."सौण्या... मेरे शेर के पैर में बहुत बड़ा कांटा घुस गया है...तू अपनी भट्टी में बड़ा सुआ तैयार कर ..... कल रात मंदिर के पीछे जंगल में आके उसके पंजे से वो कांटा निकाल दे...!!"
...सौण्या ने किसी को कुछ नी बताया  लेकिन डरते पड़ते अपना लोहे का सुआ लेकर .माँ की बताई हुई जगह पहुँच गया ..कांटा निकला और डर के हांफता हुआ घर आ गया  ..पत्नी जाग गई ..बोली ...इतनी रात को कहा गए थे...???. 
......डरते सहमते सौण्या ने सारी बात बताई तो ..पत्नी बोली ..घर में कुछ भी नहीं है...माँ से कुछ माँगा भी....????...हक्का बक्का सौण्या इतना ही कह सका मुझे पंजे के सिवा कुछ भी नहीं दिखा ...क्या मांगता ...???
..सौण्या "दिदा" (पहाड़ों में अधिकतर लोहार के लिए बड़े भाई का संबोधन )अब  इस  दुनिया में नहीं है दोस्तों ....!! १२० साल तक जिया वो...!!! स्कूल के दिनों मेंआते जाते उनको  हुक्का गुड गुड़ाते हुए मैंने  उनके घर के बहार  सैकड़ों बार देखा उन्हें... 

...बहरहाल उनके तीन बेटे है.....एक बेसिक शिक्षा अधिकारी.....,,,,एक बैंक में जोनल मैनेजर ...,,,, एक ओ० एन० जी० सी० में डिप्टी डारेक्टर......!! !!

........बिन मागे माँ ने बहुत कुछ दे दिया था उन्हें........!!!

Sunday, February 27, 2011

सदाए पीछा करती हैं

इंटरमीडिएट एक साथ किया था सबने...!!
सब लोग बड़े खुश थे एक बड़ी सी कक्षा में से  ७ लोग अलग अलग गाँव से हम भी अपने भविष्य के सपनो में डूबे हुए...!! जैसा की अमूमन गाँव के स्कूल में होता है...!...कोई फौज में जाने की सोच  रहा था ...कोई आगे की पढाई की... कोई ..नजदीक के बड़े शहर दिल्ली जाके कोई नौकरी पकड़ के घर परिवार की माली हालत जल्दी सुधारना चाहता था....!!
खैर दोस्तों.....सबके अपने सपने सच करने का वक्त पास आ गया था...!!
.........मैं आगे की पढाई के लिए देहरादून आ गया...,मंजू...जीतू...रोली ..दिल्ली चले गए...!! बुद्दी अपने गाँव में प्रधान का लड़का था...उसके घर में नौकरी का महौल नहीं था...! उसकी शादी हो चुकी थी और ३ महीने की बच्ची का बाप था वो..!!..वरनी...का मकान का काम था..सो वो कुछ दिन के लिए कही नहीं गया...!!
......रीमा लड़की थी ..उसकी शादी की तैयारियां जोरो पर थी....!!
...इस कहानी में सबसे जादा टीस इसी बात को लेकर उठती है की जिंदगी है क्या....??? क्यूँ वो लोग इतने कम समय लेके आये...? वो सिर्फ ३ महीने के अंतर में एक दुसरे को पुकारते हुए कहा गुम हो गए...??? क्यूँ वो लोग बार बार याद आतें है...??
....शुरुआत रीमा से करता हूँ.....वो चंचल पहाड़ी देवी ..एक बहुत कोमल मन की  लड़की....सुबह सात बजे बिस्तर से उठकर हाथ में पानी का लोटा लिए छत के कोने पे मुंह धोने के लिए आई...अचानक क्या देखती है...सामने पहाड़ी सड़क पे गुजरते हुए ट्रक को ५०० मीटर गहरी खाई में लुढ़कते हुए....वो ट्रक भी पहचान गई ..और उसी के गाँव के लोकल ड्राईवर लड़के को भी.....अधखुली आँखों ने दिमाग को बहुत बुरा सन्देश दे दिया...और वो इसी सदमे में अपना नियंत्रण खो बैठी दिमाग पर ...!!!..एक महीने तक टोने टोटकों और जिंदगी की जद्दोजहद से हर गई वो....!!
....दूसरा वरनी....अपने घर बनाने के लिए ..रेत-बजरी या पत्थर के खान में .दब गया ...जिंदगी ने एक भी सांस उधार नहीं दी उसे..!!
.....तीसरा बुध्ही  ...रात में किसी सांप ने कटा ..और छौड़ गया  अपने पीछे  बीबी और ३-४ महीने की बच्ची..!! न जाने कितनी ना इंसाफी  हो जाती है खुदा के घर ..
...जीतू  ..को दिल्ली की बेलगाम बस निगल गयी....!!
.... पहाड़ी झरनों में मुह लगाके पानी पीने वाला मंजू दिल्ली के १ रुपये का गिलास पानी नहीं पचा सका ..और एक रात के डायरिया में चल बसा....!!
...रोली को दिल्ली की प्लास्टिक फक्ट्री का धुँआ खा गया .१ महीने तक वो भी खून की उल्टियों के बीच अलविदा कह गया...!!!

...बस एक सवाल है... उससे..... जिसकी हुकूमत जहा पे चलती है..की अगर ऐसा ही करना है तो क्या   जरुरत क्या है  किसी  को  दुनिया में लाने.....की...क्या जरुरत  है माँ बाप के सपने सजाने की....क्या जरुरत है दोस्तों को बनाने की...!!! 

Saturday, February 26, 2011

दूसरा रास्ता नहीं था क्या...?

....प्रभा दी को मैंने तकरीबन 13 साल बाद देखा...एक छोटे से क्लिनिक की  हाल में ...!!! कितनी बदल गयी हैं...मुझे पहचान  नहीं पाई वो...मैं भी अनजान बना  रहा ...मेरी उम्र में ही हैं वो...मगर ममेरी दीदी की सहेली थी ..तो दी ही कहता था मैं......वो बहुत सीढ़ी सादी लड़की मैं उनके साथ अक्सर  बाजार  जाता था जाने वो लोग मुझे ही क्यूँ लेते थे...तिब्बती मार्केट की दूरी किशन नगर से ३ मील होगी...६ मील उनके साथ मैं पैदल जाता था....और शायद २ रूपये की मूग वाली नमकीन मिलती थी खाने को....
........बहरहाल.... प्रभा दी के दो छोटे भाई हैं...पिताजी नहीं थे उनके ..शुरू से ही..एक बड़ा सा घर छोड़ गए थे...किराये के पैसों से ही जीवन यापन होता था,,,,उन्होंने पढाई की....खुद.. बी0  काम, एम० काम ..फिर बी एड ,,,एम् एड...सब अच्छी श्रेणी में....!!!और डिग्री कालेज में प्रोफेसर  हो गई..हैं इतनी खबर मुझे फोन पे घर में बातों के दौरान मिली थी...!!!
..वो बहुत शांत रहती थी..मगर किसी चर्चा में उनके अन्दर सरस्वती आ जाती थी...दुर्गा रूप में...!मैंने कभी किसीविषय पे उन्हें किसी सी हारते हुए नहीं  देखा...!! लेकिन आज उनके बारे में जान ने को मन हुआ...
...कुछ भारी मन से घर आया ...ममेरी बहन को फोन लगाया और छूटते ही बोला..दीदी ..प्रभा दीदी के बारे में बताओ....
" आनंद उसने जीवन भाइयों का जीवन सवारने में और माँ की हिफाजत में लगा दिया...पता ही मेरी शादी के दिन वो बहुत रोई और कहने लगी थी उमा तेरी शादी में अपनी शादी देख ली मैंने  ...मैं शायद अगले दस सालो तक भी ये सपना नहीं सजा सकूंगी...महेश को इंजीनियरिंग करानी है ..सुमित को  ऑस्ट्रेलिया जाना है ...मैं शादी कर लूँगी..तो  सबके सपने बिखर जायेंगे...माँ  एक दिन दवा न मिले तो वो उठ भी नहीं पाती .... पापा मुझे बड़ा बेटा कहते थे...उनका दिया काम  बाकी है ....!!!"
........मैंने फोन रख दिया...!!!
...सुमित ...महेश तो अपनी पत्नियों के साथ ऑस्ट्रेलिया में हैं..मुझसे बात भी हो जाती है...मगर बड़ा बेटा इतनी गुमनामी में जी गया...वो सहारे होते भी बेसहारा दिखा वो मुझे ....!!!

.....प्रभा दी .!!!!..आप के पास दूसरा रास्ता नहीं था क्या...? ???

Wednesday, February 23, 2011

बड़ी
गहरी उदासी है
कभी
मिलने चले आओ
हमारी
रूह प्यासी है
कभी
मिलने चले आओ ....!!!!

लबों पर
आखिरी दम है
कभी
मिलने चले आओ
हमें
मोहलत जरा कम है
कभी
मिलने चले आओ....!!!

हमारी
साँस थोड़े है
कभी
मिलने चले आओ
लो
हमने हाथ जोड़े हैं
कभी
मिलने चले आओ...!!!!